30-Aug-2023 07:13 PM
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उदयपुर 30 अगस्त (संवाददाता) असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि वर्तमान समय में लक्ष्मण सिंह कर्णावट को समाज सेवा से आगे बढ़ते हुए काव्य क्षेत्र में उतरकर मेवाड़ की महिमा गाते देख मन प्रसन्न हुआ। श्री कटारिया आज यहां जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित भव्य समारोह में लक्ष्मण सिंह कर्णावट द्वारा रचित मेवाड़ महिमा पुस्तक के विमोचन समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। श्री कटारिया ने कहा ..मैंने किताब नहीं पढ़ी, सिर्फ कर्णावट का नाम सुनकर यहां आया हूँ। मेवाड़ की महिमा शब्द व्यक्ति के मन में एक संस्कार पैदा करता है। मां सरस्वती की कृपा और पुस्तक पर प्रभु एकलिंगनाथ का चित्र दर्शाते ही उनका काम पूरा हो गया। उन्होंने कहा कि मेवाड़ के महाराणा स्वयं को प्रभु एकलिंगनाथ का दीवान मानकर काम करते रहे। बप्पा रावल से लेकर महाराणा भगवत सिंह तक का इतिहास आपने अपने इन पद्यों में लिखा है। यह किताब आने वाली पीढ़ी को मेवाड़ का इतिहास बताएगी, 300 पेज की यह पुस्तक पढ़ कर लगेगा कि मेवाड़ क्या है। समारोह की अध्यक्षता राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति कर्नल डॉ. एस एस सारंगदेवोत ने की। विशिष्ट अतिथि मंगलायतन विश्वविद्यालय अलीगढ़ के कुलपति प्रो. परमेन्द्र जी दशोरा थे। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. प्रदीप कुमावत ने शिरकत की। अध्यक्षता करते हुए डॉ. सारंगदेवोत ने कहा कि स्वाध्याय के बिना इतनी अच्छी पुस्तक नहीं लिखी जा सकती। पुस्तक ने गागर में सागर भरने का काम किया है निश्चित रूप से विश्वविद्यालयों में रेफरेंस के रूप में यह पुस्तक काम आएगी। इतिहासकार कहते हैं कि अलग-अलग पुस्तकों में कभी किसी महाराणा के साथ तो कभी किसी महाराणा के साथ न्याय नहीं हुआ लेकिन आपने इस पुस्तक में सभी महाराणाओं के साथ न्याय किया, ऐसा प्रतीत होता है। जिस तरह कन्हैयालाल सेठिया की कविता अरे घास की रोटी.. लोगों की जुबान पर है इसी तरह आपकी ये कविताएं भी आने वाली पीढियों की जुबान पर होगी। विशिष्ट अतिथि प्रो. परमेन्द्र जी दशोरा ने कहा कि 302 पृष्ठों में 32 महाराणाओं के बारे में जानकारी दी गई है। इतिहास साहित्य की कृति है या साहित्य इतिहास की, यह कहना मुश्किल हो जाता है लेकिन इतिहासकारों को यह मेवाड़ महिमा निश्चित रूप से शिक्षा देगी। इतिहास दो तरह का होता है - एक शासन पोषित जो विवादों में रहता है और दूसरा जो प्रज्ञा लिखित, जो बुद्धि से लिखा जाता है। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. प्रदीप कुमावत ने कहा कि आज एक और दुर्लभ संयोग है कि श्रावणी नक्षत्र में हम इस पुस्तक का विमोचन कर रहे हैं जिसकी अधिष्ठात्री माँ सरस्वती है। उन्होंने कहा कि गद्य रूप में इतिहास लिखना फिर भी आसान है लेकिन इसे पद्य रूप में संकलित करना और लिखना अपने आप में अनूठा है।...////...