संसद और विधानमंडलों में गरिमा बनाए रखने की जरुरत-धनखड़
11-Jan-2023 07:49 PM 1234648
जयपुर 11 जनवरी (संवाददाता) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद और विधानमंडलों में गरिमा बनाये रखने की जरुरत बताते हुए कहा है कि लोकतंत्र तभी फलता फूलता है जब विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों परस्पर सहयोग और सामंजस्य के साथ जन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए काम करते हैं। श्री धनखड़ ने आज जयपुर में 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन का उद्घाटन किया और इसके बाद अपने उद्घाटन भाषण में यह बात कही। उन्होंने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक समाज में, जनमत की प्रधानता ही उसके मूल ढांचे का भी मूल आधार है। उन्होंने कहा कि संसद और विधानमंडलों की प्रधानता और संप्रभुता आवश्यक शर्त हैं जिस पर समझौता नहीं किया जा सकता। उन्होंने सभी संवैधानिक संस्थाओं से अपनी अपनी मर्यादाओं में रह कर कार्य करने का आग्रह किया। उन्होंने राज्य के सभी अंगों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि लोकतंत्र तभी फलता फूलता है जब विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों परस्पर सहयोग और सामंजस्य के साथ, जन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए काम करते हैं। उन्होंने भारत को लोकतंत्र का जनक बताया और जोर देकर कहा कि लोकतंत्र की मूल भावना ही जनमत का आदर और जन कल्याण सुनिश्चित करना है। श्री धनखड़ ने कहा कि संवाद, विमर्श और बहस ही संसद और विधानमंडलों की कार्यवाही को सार्थक बनाते हैं, इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधियों को हमारी संविधान सभा से प्रेरणा लेनी चाहिए जिसकी लगभग तीन वर्षों की अवधि में 11 सत्रों के दौरान, व्यवधान की एक घटना भी नहीं हुई। उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था विकसित करने का आह्वान किया जिससे लोकतंत्र के ये मंदिर, मर्यादित और सार्थक संसदीय कार्यपद्धति में उत्कृष्टता के केंद्र बन कर उभर सकें। संसद और विधानमंडलों में व्यवधानों की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए श्री धनखड़ ने जनप्रतिनिधियों को आगाह किया कि वे जनता की इच्छाओं और आकांक्षाओं का आदर करें और अपने व्यवहार से अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करें। उन्होंने अपेक्षा की कि यह सम्मेलन इन मुद्दों का अविलंब समाधान निकालने पर विचार विमर्श करेगा। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के इन मंदिरों की विषम दशा से हम सब भली भांति परिचित है और अब समय आ गया है कि इस निराशाजनक स्थिति का उचित समाधान निकाला जाये। संसद और विधानसभाओं में अशोभनीय घटनाओं और व्यवहार पर जनता में व्याप्त रोष का निदान खोजा जाना चाहिए। श्री धनखड़ ने कहा कि यह हम सबका सौभाग्य है कि भारत विश्व में लोकतान्त्रिक विस्तार का प्रतीक भी है और हमें विश्व का सबसे बडा लोकतंत्र होने का गौरव हासिल है। उन्होंने कहा कि संविधान सभा एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करती है, संविधान सभा में विमर्श में सोहार्द, भाषा में शिष्टता और विचारों में निष्ठा थी वो लोग विद्वान थे, बड़े उद्देश्य के प्रति समर्पित थे। उनके सामने एक लक्ष्य था तत्कालीन विषम स्थितियों के प्रति सजग थे और उन परिस्थितियों में अपनी जिम्मेदारी के प्रति जागरुक थे। उन्होंने कहा “क्या व्यवधानों और नियमों के उल्लंघन को एक राजनीतिक रणनीति बनने दिया जा सकता है, कदापि नहीं।” उन्होंने कहा कि संसद और विधायिका में आज अनुभव, योग्यता और प्रतिभा भरपूर है जरा सोचिए आज वो पुराने मूल्य और आदर्श क्यों और कहां खो गए है। उन्होंने कहा “मैं आशावान हूं कि इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में मंथन और विचार विमर्शों से अमृत निकलेगा जो अवश्य ही हमारे देश और संसदीय व्यवस्था को अमृतकाल में नई ऊर्जा देगा। भारत द्वारा जी-20 का नेतृत्व ग्रहण करने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि हमने स्थायी विकास और समावेशी समृद्धि के लिए विश्व को नया मंत्र दिया है “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य”। एक समृद्ध और सशक्त भारत के निर्माण के लिए उन्होंने सभी से आजादी के अमृतकाल में सकारात्मक योगदान करने का आह्वान भी किया। इस अवसर पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा के उपसभापति डा. हरिवंश, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष डा. सी पी जोशी, उपनेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया तथा देश के अनेक विधानमंडलों के पीठासीन अधिकारी मौजूद थे।...////...
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